अगर आप बीज लेना चाहे तो सही भाव में और अच्छी क्वालिटी का बीज लेंवे।
बीकानेरी ककड़ी,पंजाब नंबर 1- 1200रूपए/ प्रति किलो (बड़ी ककड़ी)
उत्पादन +100 क्वांटल प्रति बीघा
मटकाचरा -800 रूपए/प्रति किलो ,उत्पादन 40 क्वान्टल प्रति बीघा
सफेद ककड़ी - 1500 रूपए प्रति किलो, उत्पादन 80_100 क्वांटल प्रति बीघा
8094480700
ककड़ी/कचरा की खास बात
क्या आप जानते हैं की ककड़ी, जिसे हरियाणा राजस्थान में काचरा भी बोला जाता है वैसे इससे सस्ती और खेती हो ही नहीं सकती क्योंकि इसकी खेती बहुत ही अच्छे ढंग से की जा सकती है और बीज का भी खर्चा ज्यादा नहीं आता अगर आप बात करते हैं बीघे की तो एक बीघे में बीज की मात्रा 400 से 600 ग्राम होती है। इस की खेती फरवरी के महीने में शुरू हो जाती है और जुलाई के महीने तक इसकी बिजाई कर सकते हैं, फरवरी के महीने में इसकी अगेती फसल लेने के लिए बिजाई की जाती है उस वक्त बीज की मात्रा ज्यादा रखी जाती है क्योंकि कुछ एरिया में पाला ज्यादा होने के कारण कुछ बीज अंकुरित नहीं हो पाते तो इसके बीच की मात्रा 500 से 600 ग्राम ली जाती है और तीसरे महीने के बाद बीज की मात्रा 400 ग्राम ही रखी जाती है।
कुछ किसान इसकी खेती करते हैं तो ज्यादा तर किसान भाई इसका बीज अच्छी क्वालिटी का देख कर लेकर आते हैं परन्तु वह बीज हाइब्रिड होने के कारण उनमें फंगस का खतरा बना रहता है और महंगा भी बहुत आता है। और अच्छा उपज लेने के लिए उसमें तरह-तरह की सप्रे और जहरीले पदार्थ दिए जाते हैं जिससे उसमें कोई कीड़ा या बीमारी ना लगे जिससे उसकी क्वालिटी भी कम हो जाती है खर्चा भी बढ़ जाता है और धीरे-धीरे उत्पादन कम होने लगता है और इस बात से परेशान होकर किसान भाई उस फसल को ट्रैक्टर की मदद से जोत देते हैं। और दोबारा उस फसल से किसान डरने लगता है। तो किसान भाइयों इसका बीज हमेशा खुला बीज लेवे और उसको गुड़ से उपचारीत करें,जिससे उसके फल की क्वालिटी अच्छी हो और जड़ों में कीड़ा भी ना लगे यह रिजल्ट मैंने खुद के खेत में देखा है कि अगर गोडसे बीज को उपचारित करके बीजाई करे तो मिठास अच्छी होती है। गुड़ के अंदर अगर आप चाहे तो ट्राइकोडरमा का घोल बनाकर गुड़ के साथ बीजों पर लगाएं। और तीन से चार घंटा तक उससे छाया में रख देवें फिर उसकी बिजाई करें।
सिंचाई का महत्व
बिजाई करने से पहले खेत की सिंचाई अच्छे ढंग से करें जिससे जमीन में नमी बनी रहे और नहर के पानी से की हुई सिंचाई ज्यादा दिन तक नमी देती है। और कई जगहों पर किसान भाइयों के पास पानी कम होने के कारण ट्यूबवेल के पानी से की हुई सिंचाई से पानी जल्दी देना पड़ता है।
बिजाई का तरीका
सब्जी की खेती में किसान ज्यादातर बेड या फिर नालियां बनाकर बीज को लगाते हैं यह तरीका उन फसल के लिए है जिन्हें ज्यादा पानी की जरूरत हो और घास निकालने में आसानी हो ककड़ी की फसल में इन दोनों की जरूरत नहीं होती क्योंकि ककड़ी की फसल एक बिरानी खेती है।
इसकी बिजाई नरमा बीटी कपास आदि बीजने वाली मशीन से करें क्योंकि इसमें फूलों का टाइम बिजाई के 40 दिन बाद आता है उस वक्त एक पानी की जरूरत होती है और बिजाई से 20 दिन बाद जब तीन से चार पत्ते हो तो इसमें से घास निकालना आसान होता है जो मशीन (सिलर) नरमा और कपास की फसल में घास निकालने और खाद् देने में प्रयोग होती है उससे ककड़ी की बेल में से घास निकाला जा सकता है जिससे मजदूरी का खर्च और वीड़ीसइड (घास की स्प्रे) का खर्चा बचाया जा सकता है और उस मशीन की मदद से पौधों के पास मिट्टी भी लग जाती है जिससे पानी लगाते वक्त आसानी रहती है और पानी ज्यादा समय तक नहीं देना पड़ता फिर उसके बाद पंक्ति से पंक्ति मिलने लगती है और फूल आने लगते हैं कई किसान इसकी खेती बेड बनाकर करते हैं और उसमें से घास हाथों से उसकी निराई गुड़ाई करनी पड़ती है और ज्यादा पानी से इस के फूल गिरने लगते हैं यह बिजाई का तरीका राजस्थान के गंगानगर और हनुमानगढ़ के किसान बहुत से समय से प्रयोग करते आ रहे हैं। नरमा कपास की मशीन से बीज की बिजाई उस पर दिए हुए खांचे से सेट करें और नॉर्मल ट्रैक्टर से बिजाई करें कोई भी तरह की खाद की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि यह खुद एसिडिक नेचर का पौधा होता है। इस तरह की बिजाई करने से तोड़ने में भी आसानी होती है।
मशीन की बिजाई से बीज सही दूरी पर गिरता है और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 1½ फिट होती है।
अगर आप मशीन से बिजाई कर रहे हैं तो पंक्ति से पंक्ति की दूरी मशीन पर सेट कर सकते हैं एक बार में मशीन 4 पंक्तियां बनाकर चलती है जिसमें आप इसमें और भी सब्जियां लगा सकते हैं जैसे भिंडी ग्वार बंगा आदि।
इस फसल की जानकारी अलग से दी हुई है जिसमें सिंचाई, बीज की मात्रा, रोग आदि बताए गए हैं।
धन्यवाद।
9549160810
ReplyDelete