Thursday, 24 September 2020

PAPITA KI KHETI KESE KARE, पपीता की खेती कैसे करें।

papita ki kheti

#पपीता की खेती कैसे करें #papita ki kheti kese kare

PAPITA (papaya)
Ramram kisan bhaiyon jesa ki aap jante h ki papita ek unnat kheti ka hissa hai,or papite ki kheti me ek achi income hai.
पपीता एक रिस्की सोदा है, और पपीते में साधारण खेती से ज्यादा मेहनत है
फिर भी कई किसान कर रहे हैं इस खेती को क्योंकि इसमें अच्छा मुनाफा है और यह अच्छा बिजनेस के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि कई किसान इसकी खेती करने के बाद इसकी व्यापारिक योजना के बारे में जानना जाते हैं और उसे अच्छे ढंग से कर रहे हैं और जो किसान इससे छोड़ रहे हैं उनमें यही एक कमी है की इसकी खेती में कोई भी बीमारी या फिर कमी के कारण डर रहे हैं इसमें नॉर्मल तरीके से ऊपर ना लेना सबसे बड़ी कमी है और जो किसान इसकी उन्नत खेती करके अच्छा मुनाफा नहीं ले रहे हैं वह एक अच्छा भाव को देख रहे हैं कि क्योंकि अगर अच्छी पैदावार नहीं ले रहे तो अच्छा भाव लेने की सोचते हैं और अपना खर्चा निकालने की सोचते हैं।
और जो अच्छी पैदावार और अच्छा भाव ले रहे हैं वह खुद के नाम की मार्केटिंग बना रहे हैं। और इसे खुद अच्छे थोक के भाव में बेच रहे हैं इसमें उनका खुद का मुनाफा तो है और अगले को भी अच्छे भाव में फल मिल रहा है।

पपीता (Carica papaya)
Family (Caricaceae)
Origin (Mexico and Central America)

पपीते की जमीन तैयार करने की विधि।
जमीन को अच्छी तरह जोत कर तैयार कर लेंगे और उसमें जरूरत अनुसार खाद का प्रयोग करें जिस से पौधे से अच्छी पैदावार मिले।
और पौधा रोपण करते वक्त अपने जमीन के अनुसार उसमें नालियां और बेड का ध्यान रखें।
 पौधा रोपण का समय
जनवरी है,जिसमें आप पौधारोपण करें।
और दिसम्बर में बीज लगाना या नर्सरी तैयार करने का समय है।
जनवरी के पहले सप्ताह में पपीते को लगाया जा सकता है
और सितंबर से अक्टूबर में भी इसकी खेती शुरू की जा सकती है
पपीते का बीज लगाने के बाद 22 दिन के बाद पौधारोपण होता है या फिर ऐसे कहें किसका पौधा रोकने योग्य होता है।

जमीन तैयार करने की विधि।
पपीते का पौधा 6 * 8 की दूरी पर लगाया जाता है क्योंकि इसकी खेती करते वक्त खेत खाली होता है और अगर बागवानी में दूसरे पौधों के साथ इस के पौधों को लगाया जाए तो यह मुख्य फसल के साथ लगाया जाता है यह आप उस की दूरी देख सकते हैं की दूसरी बागवानी फसल में लगाया जाए या खाली खेत में लगा रहे हैं।
इसके पौधों की दूरी इससे पहले चल रही बागवानी की फसल के हिसाब से भी तय की जा सकती है।
सिंचाई ।
वैसे तो पपीते में सिंचाई की ज्यादा जरूरत नहीं होती और गर्मी के सीजन में 4 से 5 दिन के अंतराल में पानी देवें।
एक बात का खस तौर पर ध्यान रखें पानी लगाते वक्त पानी पपीते के पौधे से ना टकराए। अगर पानी के संपर्क में होता रहता है तो मुख्य भाग जोकि जमीन की सतह से 1 इंच ऊपर होता है वह गलने लगता है और पौधा नष्ट हो जाता है।

 पपीते में लगने वाली बीमारी व रोग।
इसमें मुख्य तौर पर मांहूं के नाम की बीमारी लगती है जोकि एक पौधे पर लगने पर 15 दिनों में पूरे खेत में फैल जाती है और इससे पौधों को बचाया भी नहीं जा सकता।
मांहूं बीमारी के उपाय।
इस बीमारी को रोकने के लिए rogar or blurcopper के नाम की सप्रे आती है जिसे 15ml रोगर एक ढोलकी में जो कि 18 से 20 लीटर की होती है। और दो माचिस के खोखे जो 20ml का ना होता है इसे मिलाकर चार से पांच ढोलकी प्रति बीघा के हिसाब से की जाती है।
पपीते के वलय-चित्ती रोग को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे कि पपीते की मोजेक, विकृति मोजेक, वलय-चित्ती (पपाया रिंग स्पॉट) पत्तियों का संकरा व पतला होना, पर्ण कुंचन तथा विकृति पर्ण आदि। पौधों में यह रोग उसकी किसी भी अवस्था पर लग सकता है, परन्तु एक वर्ष पुराने पौधे पर रोग लगने की अधिक संभावना रहती है।

रोग के कारण
यह रोग एक विषाणु द्वारा होता है जिसे पपीते का वलय चित्ती विषाणु कहते हैं। यह विषाणु पपीते के पौधों तथा अन्य पौधों पर उत्तरजीवी बना रहता है। रोगी पौधों से स्वस्थ्य पौधों पर विषाणु का संचरण रोगवाहक कीटों द्वारा होता है जिनमें से ऐफिस गोसिपाई और माइजस पर्सिकी रोगवाहक का काम करती है। इसके अलावा रोग का फैलाव, अमरबेल तथा पक्षियों द्वारा होता है ।

अन्य रोग

पौधों पर विषाणु का संचरण रोगवाहक कीटों द्वारा होता है जिनमें से ऐफिस गोसिपाई और माइजस पर्सिकी रोगवाहक का काम करती है। इसके अलावा रोग का फैलाव, अमरबेल तथा पक्षियों द्वारा होता है ।

पर्ण-कुंचन

पर्ण-कुंचन (लीफ कर्ल) रोग के लक्षण केवल पत्तियों पर दिखायी पड़ते हैं। रोगी पत्तियाँ छोटी एवं क्षुर्रीदार हो जाती हैं। पत्तियों का विकृत होना एवं इनकी शिराओं का रंग पीला पड़ जाना रोग के सामान्य लक्षण हैं। रोगी पत्तियाँ नीचे की तरफ मुड़ जाती हैं और फलस्वरूप ये उल्टे प्याले के अनुरूप दिखायी पड़ती हैं। यह पर्ण कुंचन रोग का विशेष लक्षण है। पतियाँ मोटी, भंगुर और ऊपरी सतह पर अतिवृद्धि के कारण खुरदरी हो जाती हैं। रोगी पौधों में फूल कम आते हैं। रोग की तीव्रता में पतियाँ गिर जाती हैं और पौधे की बढ़वार रूक जाती है।

रोग के कारण

यह रोग पपीता पर्ण कुंचन विषाणु के कारण होता है। पपीते के पेड़ स्वभावतः बहुवर्षी होते हैं, अतः इस रोग के विषाणु इन पर सरलता पूर्वक उत्तरजीवी बने रहते हैं। बगीचों में इस रोग का फैलाव रोगवाहक सफेद मक्खी बेमिसिया टैबेकाई के द्वारा होता है। यह मक्खी रोगी पत्तियों से रस-शोषण करते समय विषाणुओं को भी प्राप्त कर लेती है और स्वस्थ्य पत्तियों से रस-शोषण करते समय उनमें विषाणुओं को संचरित कर देती है।

मंद मोजेक

इस रोग का विशिष्ट लक्षण पत्तियों का हरित कर्बुरण है, जिसमें पतियाँ विकृत वलय चित्ती रोग की भांति विकृत नहीं होती है। इस रोग के शेष लक्षण पपीते के वलय चित्ती रोग के लक्षण से काफी मिलते जुलते हैं। यह रोग पपीता मोजेक विषाणु द्वारा होता है। यह विषाणु रस-संचरणशील है। यह विषाणु भी विकृति वलय चित्ती विषाणु की भांति ही पेड़ तथा अन्य परपोषियों पर उत्तरजीवी बना रहता है । रोग का फैलाव रोगवाहक कीट माहूं द्वारा होता है।

रोग प्रबंध

विषाणु जनित रोगों की रोग प्रबंध संबधित समुचित जानकारी अभी तक ज्ञात नहीं हो पायी है । अतः निम्नलिखित उपायों को अपनाकर रोग की तीव्रता को कम किया जा सकता है:

  • बागों की सफाई रखनी चाहिए तथा रोगी पौधे के अवशेषों को इकट्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए ।
  • नये बाग लगाने के लिए स्वस्थ्य तथा रोगरहित पौधे को चुनना चाहिए।
  • रोगग्रस्त पौधे किसी भी उपचार से स्वस्थ्य नहीं हो सकते हैं। अतः इनको उखाड़कर जला देना चाहिए, अन्यथा ये विषाणु का एक स्थायी स्रोत हमेशा ही बने रहते हैं और साथ-साथ अन्य पौधों पर रोग का प्रसार भी होता रहता है।
  • रोगवाहक कीटों की रोकथाम के लिए कीटनाशी दवा ऑक्सीमेथिल ओ. डिमेटान (मेटासिस्टॉक्स) 0.2 प्रतिशत घोल 10-12 दिन के अंतर पर छिड़काव करना चाहिए ।

तना या पाद विगलन

पपीते के इस रोग के सर्वप्रथम लक्षण भूमि सतह के पास के पौधे के तने पर जलीय दाग या चकते के रूप में प्रकट होते हैं। अनुकूल मौसम में ये जलीय दाग (चकते) आकार में बढ़कर तने के चारों ओर मेखला सी बना देते हैं। रोगी पौधे के ऊपर की पत्तियाँ मुरझा जाती हैं तथा उनका रंग पीला पड़ जाता है और ऐसी पत्तियाँ समय से पूर्व ही मर कर गिर जाती हैं। रोगी पौधों में फल नहीं लगते हैं यदि भाग्यवश फल बन भी गये तो पकने से पहले ही गिर जाते हैं। तने का रोगी स्थान कमजोर पड़ जाने के कारण पूरा पेड़ आधार से ही टूटकर गिर जाता है और ऐसे पौधों की अंत में मृत्यु हो जाती है। तना विगलन सामान्यतः दो से तीन वर्ष के पुराने पेड़ों में अधिक होता है। नये पौधे भी इस रोग से ग्रस्त होकर मर जाते हैं। पपीते की पैौधशाला में आर्द्रपतन (डेपिंग ऑफ) के लक्षण उत्पन्न होते हैं।

रोग के कारण

यह रोग पिथियम की अनेक जातियों द्वारा होते हैं जिनमें से पिथियम अफेनीडमेंटम तथा पिथियम डिबेरीएनम मुख्य है। इसके अलावा अन्य कवक राइजोक्टोनिया सोलेनाई भी यह रोग पैदा करते हैं। ये सभी कवक मुख्य रूप से मिट्टी में ही पाये जाते हैं।

रोग प्रबंध

  • पपीते के बगीचों में जल-निकास का उचित प्रबंध होना चाहिए जिससे बगीचे में पानी अधिक समय तक न रूका रहे ।
  • रोगी पौधों को शीघ्र ही जड़ सहित उखाड़ कर जला देना चाहिए। ऐसा करने से रोग के प्रसार में कमी आती है । इसलिए जहाँ से पौधे उखाड़े गये हों, उसी स्थान पर दूसरी पौध कदापि न लगाएं।
  • आधार से 60 सें.मी. की ऊँचाई तक तनों पर बोडों पेस्ट (1:13) लगा देना चाहिए।
  • भूमि सतह के पास तने के चारों तरफ बोडों मिश्रण (6:6:50) या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (0.3 प्रतिशत), टाप्सीन-एम (0.1 प्रतिशत), का छिङ्काव कम से कम तीन बार जून-जुलाई और अगस्त के मास में करना श्रेष्ठ रहता है ।

आर्द्रपतन रोग रोकथाम के लिए निम्नलिखित उपायों को अपनाना चाहिए

  • पौधशाला की क्यारी भूमि सतह से कुछ ऊपर उठी हुई होनी चाहिए। मृदा हल्की बलुई वाली होनी चाहिए। यदि मृदा कुछ भारी हो तो उसमें बालू या लकड़ी का बुरादा मिला देना चाहिए।जल-निकासी का उचित प्रबंध हो जिससे कि पौधशाला में अधिक देर तक पानी जमा न हो सके।
  • बीज की बोआई घनी नहीं करनी चाहिए।
  • पौधशाला की मृदा का उपचार निम्नलिखित विधियों से करना चाहिए


थायरैम या कैप्टॉन 3 ग्राम प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से पौधशाला की मिट्टी में मिला देना चाहिए ।
एक भाग फार्मलीन में पचास भाग पानी मिलाकर बने घोल को पौधशाला की क्यारी में छिड़ककर मृदा को खूब अच्छी तरह भिगोएं तथा पॉलिथीन से ढक कर एक सप्ताह के लिए छोड़ देना चाहिए। यह कार्य बोआई के एक सप्ताह पूर्व करना चाहिए।मृदा का उपचार सौर ऊर्जा द्वारा किया जाता है। इस विधि से गर्मी के दिनों में सफेद पारदर्शी पॉलीथीन की मोटी (लगभग 200 गेज) चादर को मिट्टी की सतह पर बिछाकर लगभग 45-60 दिनों के लिए ढ़क दिया जाता है। ढकने के पूर्व यदि मृदा में नमी की कमी हो, तो हृल्की सिंचाई कर देनी चाहिए जिससे सौर ऊर्जा का विकिरण अधिक प्रभावकारी ढंग से हो सके। यह कार्य अप्रैल से जून के मध्य करना चाहिए। इस क्रिया में भूमि में उपस्थित सभी प्रकार के सूक्ष्मजीवों का नाश हो जाता है। साथ ही साथ घास-फूस भी जलकर नष्ट हो जाते हैं।
बीज को बोते समय किसी कवकनाशी दवा से उपचारित कर लेना चाहिए। इसके लिए कैप्टॉन, थायरैम 2.5 ग्राम या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से मिलाकर उपचारित करें।
पौध जमने के बाद थायरैम या कैप्टॉन 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से घेोल बनाकर पैोधशाला की क्यारियों में डालने से पैोध गलन की रोकथाम हो जाती है।
सिंचाई हल्की और आवश्यकतानुसार करनी चाहिए।

पर्ण चित्ती

पपीते पर विभिन्न प्रकार के पर्ण रोग आते हैं । अनुकूल वातावरण मिलने पर इन रोगों से पपीते के फलों की काफी हानि होती है ।

सर्कोस्पोरा पर्ण चित्ती

सर्कोस्पोरा पर्ण चित्ती (लीफ स्पॉट) के लक्षण पती व फलों पर दिखायी देते हैं। दिसम्बर-जनवरी के मासों में पतियों पर नियमित से अनियमित आकार के हल्के भूरे रंग के दाग उत्पन्न होते है। दाग का मध्य भाग धूसर होता है। रोगी पत्तियाँ पीली पड़कर गिर जाती है। प्रारंभ में फलों पर सूक्ष्म आकार के भूरे से काले रंग के दाग बनते हैं जो धीरे-धीरे बढ़कर लगभग 3 मि.मी. व्यास के हो जाते हैं । ये दाग फलों के ऊपरी सतह पर, जो थोड़ा सा उठा हुआ होता है जिसके नीचे के ऊतक फटे होते हैं जिससे फल खराब हो जाता है और फल बाजार के लिए अनुपयुक्त हो जाते हैं। पकते हुए फलों पर रोग के लक्षण काफी स्पष्ट हो जाते हैं।

रोग के कारण

यह रोग सर्कोस्पोरा पपायी नामक कवक से होता है। यह कवक पौधों पर लगे पत्तियों के रोगी स्थानों पर उत्तरजीवी बना रहता है। रोग विकास के लिए 20 से 27 डिग्री सेल्सियस तापमान व पत्तियों पर उपस्थित ओस या वर्षा का पानी अनुकूल होता है। रोग का फैलाव कीट व हवा द्वारा होता है।

रोग प्रबंधन

रोगी पौधों के गिरे अवशेषों को इकट्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए। कवकनाशी दवा जैसे, टाप्सीन एम 0.1 प्रतिशत, मैंकोजेब, 0.2 से 0.25 प्रतिशत का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। यह छिड़काव 15-20 दिन के अंतराल पर दुहरा देना चाहिए।

हेल्मिन्थोस्पोरियम पर्ण-चित्ती

इस रोग के लक्षण पत्तियों पर छोटे जलीय, पीताभ-भूरे रंग के धब्बों के रूप में उत्पन्न होते हैं । पुराने धब्बों का मध्य भाग धूसर होता है। रोग की तीव्रता में पर्णवृंत मुलायम होकर ढीला पड़ जाता है। रोगी पत्तियाँ नीचे गिर जाती है। इस प्रकार के लक्षण हेल्मिन्थोस्पोरियम रोस्ट्रेटम नामक कवक से होते है। इस रोग का शेष प्रबंध सर्कोस्पोरा पर्ण-चित्ती (लीफ स्पॉट) रोग के समान है।

श्यामवर्ण

सामान्य रूप से इस रोग के लक्षण अधपके या पकते हुए फलों पर दिखायी पड़ते हैं। प्रारंभ में छोटे, गोल,जलीय तथा कुछ धंसे हुए धब्बों के रूप में उत्पन्न होते हैं, क्योंकि पकते हुए फलों की तुड़ाई बराबर होती रहती है, जिससे पेड़ पर लगे फल पर बने धब्बों का आकार लगभग 2 सें. मी. तक होता है। फल पकने के साथ-साथ इन धब्बों का आकार भी बढ़ता जाता है और कुछ समय बाद ये धब्बे आपस में मिल जाते हैं जिससे इनका आकार अनियमित हो जाता है। धब्बों के किनारे का रंग गहरा होता है और बीच का हिस्सा भूरा या काला होता है। अनुकूल वातावरण मिलने पर धब्बे के बीच में कवक की बढ़वार हल्की गुलाबी या नारंगी होती है जिसमें कवक के एसरवुलस बने होते है। धीरे-धीरे ये धब्बे फैलकर पूरे फल या उसके अधिकांश भाग पर फैल जाते हैं। रोग की तीव्र अवस्था में रोगी फल सड़ने लगते हैं। रोगी फलों में ऐमीनो अम्ल की मात्रा में कमी हो जाती है जिससे पपेन की उपलब्धि पर गहरा प्रभाव पड़ता है। फलों का मीठापन भी कम हो जाता है।

श्यामवर्ण रोग (एन्थैकनोज) के लक्षण पर्णवृत एवं तने पर भी दिखायी देते हैं। पेड़ के इन भागों पर भूरे रंग के लम्बे धब्बे बनते हैं। रोगी स्थानों पर कवक एसरवुलस दिखायी पड़ते हैं। रोगी पत्तियाँ गिर कर नष्ट हो जाती हैं।

रोग के कारण

यह रोग कवक कोलेटोट्राइकंम ग्लोओस्पोरीआइडीज के कारण होता है। यह कवक रोगी पेड़ों पर उत्तरजीवी बना रहता है। नम मौसम, रोग विकास के लिए अनुकूल होता है। फल का सड़न ३० डिग्री सेल्सियस तापमान पर अधिक होता है। रोग का फैलाव हवा एवं कीटों द्वारा होता है।

रोग प्रबंध

रोगी पत्तियों को इकट्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए। कवकनाशी दवा का छिड़काव समयानुसार करना चाहिए। मैंकोजेब, 0.2 प्रतिशत, काबॅन्डाजिम, 0.1 प्रतिशत, डैकोनिल 0.2 प्रतिशत या बोडों मिश्रण (2:2: 50) कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 0.3 प्रतिशत का छिड़काव करना चाहिए।पहला छिड़काव फल लगने के एक मास बाद करना चाहिए तथा उसके बाद 15 से 20 दिन के अंतर पर कुल 5-6 छिड़काव करना चाहिए।

पपीता की उन्नत किस्में
1. Taiwan pink
2. Red lady 786
और भी बहुत किसमें है जो क्षेत्र के हिसाब से चुन्नी जाती है।

एक बीगे का खर्च।
15 से ₹20 प्रति पौधा।
अगर आप साधारण बीज का प्रयोग करके नर्सरी तैयार करें तो नाममात्र खर्चा आता है पर इसमें ज्यादा पैदावार का भरोसा नहीं किया जा सकता।


Saturday, 19 September 2020

काचरा की खेती में बिजाई के दौरान किन किन बातों का ध्यान रखें (काकड़िओ) काचरा आदि का बीज उपलब्ध है।एक अच्छे रेट में।

राम-राम सभी किसान भाइयों न।🙏🙏

अगर आप बीज लेना चाहे तो सही भाव में और अच्छी क्वालिटी का बीज लेंवे। 
बीकानेरी ककड़ी,पंजाब नंबर 1-  1200रूपए/ प्रति किलो (बड़ी ककड़ी)
उत्पादन +100 क्वांटल प्रति बीघा
मटकाचरा -800 रूपए/प्रति किलो ,उत्पादन 40 क्वान्टल प्रति बीघा
सफेद ककड़ी - 1500 रूपए प्रति किलो, उत्पादन 80_100 क्वांटल प्रति बीघा
8094480700

ककड़ी/कचरा की खास बात
 क्या आप जानते हैं की ककड़ी, जिसे हरियाणा राजस्थान में काचरा भी बोला जाता है वैसे इससे सस्ती और खेती हो ही नहीं सकती क्योंकि इसकी खेती बहुत ही अच्छे ढंग से की जा सकती है और बीज का भी खर्चा ज्यादा नहीं आता अगर आप बात करते हैं बीघे की तो एक बीघे में बीज की मात्रा 400 से 600 ग्राम होती है। इस की खेती फरवरी के महीने में शुरू हो जाती है और जुलाई के महीने तक इसकी बिजाई कर सकते हैं, फरवरी के महीने में इसकी अगेती फसल लेने के लिए बिजाई की जाती है उस वक्त बीज की मात्रा ज्यादा रखी जाती है क्योंकि कुछ एरिया में पाला ज्यादा होने के कारण कुछ बीज अंकुरित नहीं हो पाते तो इसके बीच की मात्रा 500 से 600 ग्राम ली जाती है और तीसरे महीने के बाद बीज की मात्रा 400 ग्राम ही रखी जाती है। 

 कुछ किसान इसकी खेती करते हैं तो ज्यादा तर किसान भाई इसका बीज अच्छी क्वालिटी का देख कर लेकर आते हैं परन्तु वह बीज हाइब्रिड होने के कारण उनमें फंगस का खतरा बना रहता है और महंगा भी बहुत आता है। और अच्छा उपज लेने के लिए उसमें तरह-तरह की सप्रे और जहरीले पदार्थ दिए जाते हैं जिससे उसमें कोई कीड़ा या बीमारी ना लगे जिससे उसकी क्वालिटी भी कम हो जाती है खर्चा भी बढ़ जाता है और धीरे-धीरे उत्पादन कम होने लगता है और इस बात से परेशान होकर किसान भाई उस फसल को ट्रैक्टर की मदद से जोत देते हैं। और दोबारा उस फसल से किसान डरने लगता है। तो किसान भाइयों इसका बीज हमेशा खुला बीज लेवे और उसको गुड़ से उपचारीत करें,जिससे उसके फल की क्वालिटी अच्छी हो और जड़ों में कीड़ा भी ना लगे यह रिजल्ट मैंने खुद के खेत में देखा है कि अगर गोडसे बीज को उपचारित करके बीजाई करे तो मिठास अच्छी होती है। गुड़ के अंदर अगर आप चाहे तो ट्राइकोडरमा का घोल बनाकर गुड़ के साथ बीजों पर लगाएं। और तीन से चार घंटा तक उससे छाया में रख देवें फिर उसकी बिजाई करें।
 
सिंचाई का महत्व
बिजाई करने से पहले खेत की सिंचाई अच्छे ढंग से करें जिससे जमीन में नमी बनी रहे और नहर के पानी से की हुई सिंचाई ज्यादा दिन तक नमी देती है। और कई जगहों पर किसान भाइयों के पास पानी कम होने के कारण ट्यूबवेल के पानी से की हुई सिंचाई से पानी जल्दी देना पड़ता है।

बिजाई का तरीका
सब्जी की खेती में किसान ज्यादातर बेड या फिर नालियां बनाकर बीज को लगाते हैं यह तरीका उन फसल के लिए है जिन्हें ज्यादा पानी की जरूरत हो और घास निकालने में आसानी हो ककड़ी की फसल में इन दोनों की जरूरत नहीं होती क्योंकि ककड़ी की फसल एक बिरानी खेती है।
इसकी बिजाई नरमा बीटी कपास आदि बीजने वाली मशीन से करें क्योंकि इसमें फूलों का टाइम बिजाई के 40 दिन बाद आता है उस वक्त एक पानी की जरूरत होती है और बिजाई से 20 दिन बाद जब तीन से चार पत्ते हो तो इसमें से घास निकालना आसान होता है जो मशीन (सिलर) नरमा और कपास की फसल में घास निकालने और खाद् देने में प्रयोग होती है उससे ककड़ी की बेल में से घास निकाला जा सकता है जिससे मजदूरी का खर्च और वीड़ीसइड (घास की स्प्रे) का खर्चा बचाया जा सकता है और उस मशीन की मदद से पौधों के पास मिट्टी भी लग जाती है जिससे पानी लगाते वक्त आसानी रहती है और पानी ज्यादा समय तक नहीं देना पड़ता फिर उसके बाद पंक्ति से पंक्ति मिलने लगती है और फूल आने लगते हैं कई किसान इसकी खेती बेड बनाकर करते हैं और उसमें से घास हाथों से उसकी निराई गुड़ाई करनी पड़ती है और ज्यादा पानी से इस के फूल गिरने लगते हैं यह बिजाई का तरीका राजस्थान के गंगानगर और हनुमानगढ़ के किसान बहुत से समय से प्रयोग करते आ रहे हैं। नरमा कपास की मशीन से बीज की बिजाई उस पर दिए हुए खांचे से सेट करें और नॉर्मल ट्रैक्टर से बिजाई करें कोई भी तरह की खाद की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि यह खुद एसिडिक नेचर का पौधा होता है। इस तरह की बिजाई करने से तोड़ने में भी आसानी होती है।
मशीन की बिजाई से बीज सही दूरी पर गिरता है और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 1½ फिट होती है।
अगर आप मशीन से बिजाई कर रहे हैं तो पंक्ति से पंक्ति की दूरी मशीन पर सेट कर सकते हैं एक बार में मशीन 4 पंक्तियां बनाकर चलती है जिसमें आप इसमें और भी सब्जियां लगा सकते हैं जैसे भिंडी ग्वार बंगा आदि।
इस फसल की जानकारी अलग से दी हुई है जिसमें सिंचाई, बीज की मात्रा, रोग आदि बताए गए हैं।

धन्यवाद।

जागरूक किसान एक अच्छी इनकम के लिए किस चीज का ध्यान रखें।

क्या आप जानते है।की अच्छी फार्मिंग करने के लिए सबसे पहले किसान को किस चीज का ध्यान रखना चाहिए।

सबसे पहले आती है बात मार्केटिंग की जी हां बिलकुल अगर मार्केट में आपकी कोई भी फसल या सब्जी नहीं बिक रही और भाव नहीं है तो ये खेती कामयाब नहीं होगी।आपको सभी फल या सब्जियां मार्केट को देख कर ही बीजनी पड़ेगी अगर किसी दूसरे किसान ने एक साल में अच्छा उत्पादन लेलिया तो इसका मतलब ये नहीं कि आपकी भी ठीक उसकी तरह इनकम होगी हो सकता है कि उसका एग्रीमेंट किया हो पहले से या फिर जितनी जरूरत है या मांग है फल, सब्जी की वो पूूरी हो रही हो और वैसे ये एक भेड़चाल वाली बात है।
अगर आप किसी भी किसान के खेत में जाते है और वहा से ज्ञान लेते है तो उसे सबसे पहले मार्केटिंग के बारे में पूछिए।की क्या कंडीशन चल रही है।
अगर आप फल या सब्जी लगा रहे हैं तो उसमे आप खर्चा करेंगे फिर उसमे लेबर का भी खर्च होगा।और ऐसे करके आप लाखो रूप्ए खर्च कर देंगे।और आप को अंत में इसमें घाटा भी लग सकता है।तो मेरी एक राय है कि आप मार्केटिंग का नॉलेज रखे। धन्यवाद।

Wednesday, 16 September 2020

rice is not profitable in some area/block cause of 3 phase electricity connection (agricultural connection)

Ram Ram sabhi Kisan bhaiyon ko dekho aaj ke time mein agar kisi Kisan ke khet mein Bijli connection nahin hai jisse vah apni irrigation kar sake to use rice ki farming karne ka koi matlab nhi h koi fayda nahin hai kyunki agar uske pass connection nahin hai to vah simple si baat hai ki generator ya FIR koi diesel engine ka use Karega jisse vah apna sansadhan chla ke Pani fasal ko dene ke liye majboor hoga to isliye Jo Rajasthan sarkar hai Rajasthan mein rice kam hota h.
 rajasthan ka naam aate sidha desert ya dryland area show hota hai aur isi Rajasthan mein agar apan 2 district ki baat karte hain Ganganagar aur Hanumangarh jaha per bahut jyada area mein rice ka cultivation hota hai aur acha production hota hai so Punjab mein har Kisan ke khet mein light hai sabhi ek hai per Rajasthan mein nahin hai kyunki jagruk nahin the unhone file nahin jama karwai aur isliye vah piche rah Gaye to kisano ko hi samajhne ki baat hai agar apan 1 hectare mein matlab 4 bigha mein Rajasthan ki baat a rahi hai to char bighe(1hectare) aur Punjab ki baat ho rahi hai to ek hectare matlab 2.5 acre. UN kisanon ko zero budget kharche wali kheti karni chahie ab dekho ek bheege ke andar agar 10 se 12 quantal rice ho raha hai aur agar uske pass 10 bigha jameen hai to vah Kya Karega vah uska production so se 120 contal tak hi le sakega agar acchi paidawar Hui. generator Lagaega jiska dedh lakh rupaye kam se kam kharch hai use vah motor chalaega motor ka kharcha, maintenance, labour ka kharcha hai to vah yahi sochkar wo easy way mein uski farming kare to unhen koi aatmhatya nahin karni padegi aur koi KCC ka budget ka load nahin uthana padega, Par abhi last mein jab uska hisab Karta hai to usmein usko loss hota hai to usko agar vah 5 lakh ki fasal a Raha to usmein se 250000 ka to diesel kharcha aa jata hai aur Baki labour,maintenance, ghar ka bhi kharcha hota hai to wo kahan uske paise pure Karega, agar uske paas connection hai unit ka jo kharcha kam a raha hai to theek hai acchi baat hai,Varna possible nahin hai yah Rajasthan ki baat isliye kar raha hun kyunki m khud Rajasthan se Hu, Punjab mein log electricity ka connection hai pr aj ki new generation mein changes aane Lage Hain,logo mein fark dikhne Lage koi viklang hai koi kaise paida ho rahe hain Rajasthan mein fir bhi yah chij kam hai, Pani waste jyada ho raha hai Rajasthan mein pani Mana jaaye to pani hi hai Jahan per pani hai to vahan per life hai uski jagah per, agar dusri Jo kam Pani le wo fasal bhi lgai jaaye to profitable hai bahut se Kisan dikhava karne per aa jaate Hain ki hamare chawal hota hai Mana ki acchi baat hai ki chawal wali jameen hai per usko aap advantage Lo uska disadvantage mat lo hamare pass irrigation ka shauk nahin hai, aap narma beej Lo Jaise cotton,till, Bajra Ho Gaya jisse Pani bhi kam use ho or kharcha bhi kam aye.
Kisan itni si chij ko soch kar chalega ki hamen zero budget kheti karni hai tabhi success Ho payega Sarkar kuchh nahin kar sakti, Sarkar kya karegi aaye do Guna karegi to karenge to utna kharcha bhi hoga theek hai uska price mil sakta aapko aur use chij ka jo lagat hai us se bhi jyada aaegi, profit Ho per lagat bilkul Na aaye, abhi ho sake survive kar sake. Apne bacchon ko bhi padha sake, Ghar chala sake.

How we start poultry farm in field

 राम-राम सभी किसान भाइयों को जैसा कि आप जानते हैं आज के टाइम में भारतीय किसान पोल्ट्री फार्म डेरी फार्म मछली फार्म बटेर पालन बतख पालन आदि यह...