Monday, 18 April 2016

Adrak ki Kheti kese kre– अदरक की खेती


Agar aap Adrak ki vaigyanik kheti ki soch rahe hai to ise jarur se padhe aur jankari hasli kare. Adarak jise Ginger bhi bolte hai, iski saalon bhar acchi demand rahti hai aur isliye yah ek aisa farming business hai jise aap saalon bhar chala aur kama sakte hain. अगर आप अदरक की खेती करना चाहते है तो आपको बहुत ही फायदा हो सकता है क्योंकि इसकी खेती में बहुत ही कम खर्च में अधिक आमदनी होती है। अदरक की खेती को अगर कृषि वैज्ञानिको द्वारा बताये गए तरीको से किया जाए तो किसानो को अच्छी फसल की प्राप्ति हो सकती है। अदरक के तीन किस्म ऐसे है जो हमारे देश में भली भाती की जाती है एक सुप्रभात दूसरा सुरुचि और तीसरा सुरभी। तो आइये जानते है कैसे करे अदरक की खेती ।


कैसे करे अदरक की खेती  / How to do Ginger Farming

Agar sahi tarike se Adark ki kheti ki jay to is farming business se India mein accha kamaya jaa sakta hai. Jaisa hum sabhi jante hai ki Adrak ke kafi fayde hai aur har gharon mein iska prayog hota hai aur iski demand saalon bhar rahti hai. Scientific tarike se agar ginger ke farming ki jaye to ise ek business ke rup mein accha fayda mil sakta hai. To chaliye jante hai kaise kare Adrak ki sahi tarike se kheti:

भूमि का चयन और तैयारी

किसान चाहे तो अदरक की खेती किसी भी तरह के भूमि पर कर सकते है लेकिन उचित जल निकास वाली दोमट भूमि में अदरक की खेती को सबसे सर्वोतम माना जाता है। मांदा का निर्माण करना भी अदरक की खेती के लिए अच्छा होता है। मांदा निर्माण से पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई कर के उसे भुरभुरा बना लेना चाहिए। अदरक की खेती को खरपतवार रहित रखने के लिए और मिट्टी को नरम बनाये रखने के लिए आवश्यकता अनुसार खेत की जुताई करते रहना चाहिए ।

जलवायु

कृषि वैज्ञानिको द्वारा अदरक की खेती ऐसे जगह पर करना चाहिए जहाँ नर्म वातावरण हो। फसल के विकास के समय ५० से ६० से.मी. वार्षिक वर्षा हो साथ ही भूमि ऐसी होनी चाहिए जहाँ पानी ना ठहरे और हल्की छाया भी बनी रहे ।



बीज की बुआई

बीज कंदों को बोने से पहले ०.२५ प्रतिशत इथेन, ४५ प्रतिशत एम और ०.१ प्रतिशत बाविस्टोन के  मिश्रण घोल में लगभग एक घंटे तक डुबाए रखना चाहिए । फिर दो से तीन दिनों तक इसे छाया में ही  सुखने दें। जब बीज अच्छे से सुख जाए तो उसे लगभग ४ से.मी. गहरा गड्ढा खोद के बो देना चाहिए । बीज बोने समय कतार से कतार की दूरी कम से कम २५ से ३० से.मी. और पौधों से पौधों की दूरी लगभग १५ से २० से.मी. होनी चाहिए। बीज के बुआई के तुरंत बाद उसके ऊपर से घांस फुंस पत्तियों और गोबर की खाद को डाल कर उसे अच्छे से ढक देना चाहिए इससे मिट्टी के अन्दर नमी बनाये रखना आसान होता है साथ ही अदरक के अंकुरन तेज धुप से बच सकते है ।

सिंचाई / जल प्रबंधन

अदरक की खेती में बराबर नमी का बना रहना बहुत जरुरी होता है इसलिए इसकी खेती में पहली सिंचाई बुआई के तुरंत बाद कर देनी चाहिए। फिर भमि में नमी बनाये रखने के लिए आवश्यकता अनुसार सिंचाई करते रहना चाहिए । सिंचाई के लिए टपक पद्धति या ड्रिप एरीगेशन का प्रयोग किया जाए तो और भी बेहतर परिणाम सामने आता है।

खाद प्रबंधन

अदरक की खेती में मिट्टी के जांच करने के बाद ही पता चलता है की कब ओर कितना खाद का प्रयोग करना चाहिए। अगर मिट्टी की जांच ना भी की जाए तो भी गोबर की खाद या कम्पोस्ट 20 से 25 टन , नत्रजन 100 किलो ग्राम / kg, 75 किलो ग्राम kg फास्फोरस और साथ ही साथ में 100 किलो ग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देनी चाहिए। इस खाद को देने के लिए, आप चाहे तो  गोबर या कम्पोस्ट को भूमि की तैयारी से थोड़े पहले खेत में सामान्य रूप से डाल कर अच्छे से खेत की हल से जुताई करनी चाहिए । नेत्रजन, फास्फोरस और पोटाश की आधी मात्रा बीज की बुआई के समय देना चाहिए और बांकी आधी को बुआई के कम से कम ५० से ६० दिनों के बाद खेत में डाल कर मिट्टी चढ़ा देना चाहिए ।

रोग नियंत्रण

अदरक की खेती को प्रभावित करने वाले दो रोग होते है :

मृदु विगलन
प्रखंध विगलन
इन रोगों के प्रकोप से पौधो के निचे की पत्तियां पीली पर जाती है और बाद में पूरा पौधा पीला हो कर मुडझा जाता है साथ ही भूमि के समीप का भाग पनीला और कोमल हो जाता है। पौधा को खीचने पर वो प्रखंड से जुड़ा स्थान से सुगम्बता से टूट जाता है। बाद में धीरे धीरे पूरा प्रखंड सड़ जाता है । मृदु विगलन रोग से बचाव के लिए भूमि में चेस्टनट कंपाउंड के ०.६ प्रतिशत घोल को आधा लीटर प्रति पौधे के दर से देते रहना चाहिए ।

कुछ रोग ऐसे भी होते है जिसकी वजह से पत्तियों पर धब्बे पर जाते है जो की बाद में आपस में मिल जाते है । इस रोग की वजह से पौधों की वृद्धि पर प्रभाव पड़ता है जिससे उपज कम हो जाती है । इस रोगकी वजह से पौधों की वृद्धि पर प्रभाव पड़ता है जिससे उपज कम हो जाती है । इस रोग से बचने के लिए बोर्डो मिश्रण का उपयोग ५:५:५० के अनुपात में किया जाना चाहिए।

4 comments:

  1. Wah! Mere bhai, great helpfull thinking for farmer.

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  2. Good job! God bless you! I like your attitude & thinking....

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  3. Wah! Mere bhai, great helpfull thinking for farmer.

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