Monday, 18 April 2016

Adrak ki Kheti kese kre– अदरक की खेती


Agar aap Adrak ki vaigyanik kheti ki soch rahe hai to ise jarur se padhe aur jankari hasli kare. Adarak jise Ginger bhi bolte hai, iski saalon bhar acchi demand rahti hai aur isliye yah ek aisa farming business hai jise aap saalon bhar chala aur kama sakte hain. अगर आप अदरक की खेती करना चाहते है तो आपको बहुत ही फायदा हो सकता है क्योंकि इसकी खेती में बहुत ही कम खर्च में अधिक आमदनी होती है। अदरक की खेती को अगर कृषि वैज्ञानिको द्वारा बताये गए तरीको से किया जाए तो किसानो को अच्छी फसल की प्राप्ति हो सकती है। अदरक के तीन किस्म ऐसे है जो हमारे देश में भली भाती की जाती है एक सुप्रभात दूसरा सुरुचि और तीसरा सुरभी। तो आइये जानते है कैसे करे अदरक की खेती ।


कैसे करे अदरक की खेती  / How to do Ginger Farming

Agar sahi tarike se Adark ki kheti ki jay to is farming business se India mein accha kamaya jaa sakta hai. Jaisa hum sabhi jante hai ki Adrak ke kafi fayde hai aur har gharon mein iska prayog hota hai aur iski demand saalon bhar rahti hai. Scientific tarike se agar ginger ke farming ki jaye to ise ek business ke rup mein accha fayda mil sakta hai. To chaliye jante hai kaise kare Adrak ki sahi tarike se kheti:

भूमि का चयन और तैयारी

किसान चाहे तो अदरक की खेती किसी भी तरह के भूमि पर कर सकते है लेकिन उचित जल निकास वाली दोमट भूमि में अदरक की खेती को सबसे सर्वोतम माना जाता है। मांदा का निर्माण करना भी अदरक की खेती के लिए अच्छा होता है। मांदा निर्माण से पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई कर के उसे भुरभुरा बना लेना चाहिए। अदरक की खेती को खरपतवार रहित रखने के लिए और मिट्टी को नरम बनाये रखने के लिए आवश्यकता अनुसार खेत की जुताई करते रहना चाहिए ।

जलवायु

कृषि वैज्ञानिको द्वारा अदरक की खेती ऐसे जगह पर करना चाहिए जहाँ नर्म वातावरण हो। फसल के विकास के समय ५० से ६० से.मी. वार्षिक वर्षा हो साथ ही भूमि ऐसी होनी चाहिए जहाँ पानी ना ठहरे और हल्की छाया भी बनी रहे ।



बीज की बुआई

बीज कंदों को बोने से पहले ०.२५ प्रतिशत इथेन, ४५ प्रतिशत एम और ०.१ प्रतिशत बाविस्टोन के  मिश्रण घोल में लगभग एक घंटे तक डुबाए रखना चाहिए । फिर दो से तीन दिनों तक इसे छाया में ही  सुखने दें। जब बीज अच्छे से सुख जाए तो उसे लगभग ४ से.मी. गहरा गड्ढा खोद के बो देना चाहिए । बीज बोने समय कतार से कतार की दूरी कम से कम २५ से ३० से.मी. और पौधों से पौधों की दूरी लगभग १५ से २० से.मी. होनी चाहिए। बीज के बुआई के तुरंत बाद उसके ऊपर से घांस फुंस पत्तियों और गोबर की खाद को डाल कर उसे अच्छे से ढक देना चाहिए इससे मिट्टी के अन्दर नमी बनाये रखना आसान होता है साथ ही अदरक के अंकुरन तेज धुप से बच सकते है ।

सिंचाई / जल प्रबंधन

अदरक की खेती में बराबर नमी का बना रहना बहुत जरुरी होता है इसलिए इसकी खेती में पहली सिंचाई बुआई के तुरंत बाद कर देनी चाहिए। फिर भमि में नमी बनाये रखने के लिए आवश्यकता अनुसार सिंचाई करते रहना चाहिए । सिंचाई के लिए टपक पद्धति या ड्रिप एरीगेशन का प्रयोग किया जाए तो और भी बेहतर परिणाम सामने आता है।

खाद प्रबंधन

अदरक की खेती में मिट्टी के जांच करने के बाद ही पता चलता है की कब ओर कितना खाद का प्रयोग करना चाहिए। अगर मिट्टी की जांच ना भी की जाए तो भी गोबर की खाद या कम्पोस्ट 20 से 25 टन , नत्रजन 100 किलो ग्राम / kg, 75 किलो ग्राम kg फास्फोरस और साथ ही साथ में 100 किलो ग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देनी चाहिए। इस खाद को देने के लिए, आप चाहे तो  गोबर या कम्पोस्ट को भूमि की तैयारी से थोड़े पहले खेत में सामान्य रूप से डाल कर अच्छे से खेत की हल से जुताई करनी चाहिए । नेत्रजन, फास्फोरस और पोटाश की आधी मात्रा बीज की बुआई के समय देना चाहिए और बांकी आधी को बुआई के कम से कम ५० से ६० दिनों के बाद खेत में डाल कर मिट्टी चढ़ा देना चाहिए ।

रोग नियंत्रण

अदरक की खेती को प्रभावित करने वाले दो रोग होते है :

मृदु विगलन
प्रखंध विगलन
इन रोगों के प्रकोप से पौधो के निचे की पत्तियां पीली पर जाती है और बाद में पूरा पौधा पीला हो कर मुडझा जाता है साथ ही भूमि के समीप का भाग पनीला और कोमल हो जाता है। पौधा को खीचने पर वो प्रखंड से जुड़ा स्थान से सुगम्बता से टूट जाता है। बाद में धीरे धीरे पूरा प्रखंड सड़ जाता है । मृदु विगलन रोग से बचाव के लिए भूमि में चेस्टनट कंपाउंड के ०.६ प्रतिशत घोल को आधा लीटर प्रति पौधे के दर से देते रहना चाहिए ।

कुछ रोग ऐसे भी होते है जिसकी वजह से पत्तियों पर धब्बे पर जाते है जो की बाद में आपस में मिल जाते है । इस रोग की वजह से पौधों की वृद्धि पर प्रभाव पड़ता है जिससे उपज कम हो जाती है । इस रोगकी वजह से पौधों की वृद्धि पर प्रभाव पड़ता है जिससे उपज कम हो जाती है । इस रोग से बचने के लिए बोर्डो मिश्रण का उपयोग ५:५:५० के अनुपात में किया जाना चाहिए।

Gulab ki Vaigyanik Kheti ki Jankari – गुलाब फूल की खेती


आइए हम जानते है की गुलाब की खेती करने की विधि क्या है।



गुलाब की खेती कैसे करे / How to start Rose farming business

Yahan do rai nahi hai ki kafi sare log ab kehti apna rahe hai aur accha paisa bhi kama rahe hai, jisme se ki gulab ki kheti bhi ek hai. Agar scientic tarike se rose farming ka business kiya jaye to naa kewal aap accha kama sakte hai balki kai logon ko rojgar bhi de sakte hain.

ऐसे और भी खेती के business हैं जैसे अनार की खेती, मशरुम की खेती, इत्यादि जिसकी जानकारी यहाँ दी गयी है |

भूमि का चयन

किसी भी चीज़ के खेती करने से पहले आपको भूमि का अच्छे से चयन और inspection करना होता है। इससे आपको गुलाब के फूल के खेती में सफलता प्राप्त होने की संभावना बढ़ जाती है। अगर आप अच्छे से तैयारी कर ले और मन बना ले, तो ऐसा माना जाता है की गुलाब की खेती किसी भी तरह के भूमि पर किया जा सकता है ।फिर भी जादातर कृषि वैज्ञानिको का कहना है   की गुलाब की खेती के लिए बालुई दोमट मिट्टी वाली भूमि का चयन करे जिसमे जल का निकास अच्छा हो। इससे फुल की अच्छी उत्पादन होती है । खेती शुरू करने से पहले भूमि की अच्छे से लगभग 6 से 7 पी.एच. तक का गहरा जुताई कर लेना चाहिए।

जलवायु

वैसे तो हमे गुलाब का फुल सालो भर देखने को मिलती है। लेकिन अगर आपको अच्छे और बड़े बड़े गुलाब के फुल चाहिए तो इसके लिए आप ठण्ड के मौसम में इसकी खेती करे। march के महीने में गुलाब के फुल की खेती करना सही होता है क्योंकि इस समय का तापमान कम होता है और कम तापमान की वजह से इस मौसम में फुल अच्छे से फूलते है। अगर april में तापमान कम होगा तो भी गुलाब अच्छी Quantity में खिलेगी। गुलाब के अच्छे उत्पादन के लिए अधिक मात्रा में धुप और नमी (moisture) की जरुरत होती है।

गड्ढो की खुदाई और खाद

जब खेती के लिए जुताई का काम पूरा हो जाये तो पौधा रोपने की तैयारी करनी चाहिए। इस काम के लिए may और june का महिना सही होता है ।

सबसे पहले गहरे गड्ढे खोद ले। गड्ढा कम से कम 40 से 50 से.मि. गहरा होना चाहिए।
गड्ढा खोदने के बाद उसमे से सारे खरपतवार साफ़ कर लेना चाहिए।
उसके बाद गड्ढे को कम से कम 10 से 12 दिन के लिए खुला छोड़ दें इससे मिट्टी के सारे कीड़े मकोड़े और सारे (फफूंदी)fungus ख़त्म हो जायेंगे।
उसके बाद उस गड्ढे में कम से कम 25 से 30 से.मि. मोटाई कर के गोबर का खाद गड्ढे के ऊपर तक भर देना चाहिए।
फिर गड्ढे में मिट्टी भर कर उसमे पौधा रोप दें ।
पौधा रोपने समय दो पौधे के बिच की दुरी कम से कम 40 से 50 से.मि. होनी चाहिए ।
गुलाब की 5 किस्मे होती  है

हाईब्रिड टी (Hybrid Tea ) – इसमें बड़े बड़े फुल होते है और झारियां भी बहुत लम्बे घने होते है। इसकी एक और खास बात ये है की इसकी हर एक ताने में एक फुल जरुर से निकलते है।

फ्लोरीबंडा (floribunda) – हाइब्रिड टी के मुताबिक फ्लोरीबंडा किस्मो के फुल छोटे-छोटे होते है और इस किस्म के फुल एक साथ बहुत ज्यादा नहीं लग पते है।

पोलिएन्था (Polyanthas)  – इस किस्म के फूलों का shape हाइब्रिड टी और  फ्लोरिबंडा  से छोटा होता है  लेकिन गुच्छा  आकार में फ्लोरीबंडा किस्म से भी बड़ा होता है।

मिनिएचर (Miniature) – इस किस्म के पौधे को आप अपने घर पर भी गमले में लगा सकते है। इसके फूल और पत्ते दोनों हीं छोटे छोटे होते है।

लता गुलाब – हाइब्रिड टी और फ्लोरिबंडा गुलाबों की शाखाएँ लताओं की जैसे बढ़ती जाती है  जिसके कारण उन्हें लता गुलाब भी कहा जाता  है।

पौधे की सिचाई

पौधे की सिचाई बहुत ही जरुरी होती है। मौसम को देखते हुए पौधों की सिचाई करते रहना चाहिए। गुलाब की खेती में पौधा रोपने के तुरंत बाद सिचाई करना चाहिए। उसके बाद हर 15 दिन में सिचाई करना चाहिए।

किट पतंग से बचाव

माहू या चैंपा  नामक किट गुलाब के पौधों को नष्ट कर देता है । ये कीड़े छोटे आकार के होते है और जादातर january और february के महीने में लगते है । इस कीड़े के लग जाने से पौधा मुरझा जाता है इसकी वजह से फुल और कलियाँ झड़ जाते है।

शल्क कीट जो लाल भूरे रंग के दीखते है ये अक्सर जड़ के आसपास वाली शाखाओं में लगते है। ये किट पत्तो को नष्ट कर देते है ।

इन सब कीटो से बचने का तरीका ये है की आप नीम का काढ़ा बना कर  या फिर गौमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर 250 मि.ली. हर पम्प में डालकर फसल के चारो ओर छिड़क दे।

कटाई – छटाई

गुलाब के पौधे की कटाई छटाई लगभग एक साल बाद शुरू कर दी जाती है। सही समय पर सही तरीके से पौधे की कटाई छटाई करते रहने से अच्छे फुल की उत्पादन होती है। सूखे और कीटो से ग्रसित टहनियों को काट के हटा देना चाहिए। कटाई छटाई के बाद पौधे के कटे हुए सर पर ताजा गोबर को लगा देने से fungus नहीं लगता है

कृपा करके बताये की आपको ये जानकारी कैसे लगी।।

Tulsi ki Kheti (Holy Basil) ki Jankari – तुलसी


Aaj ke daur mein Tulsi ke paudhe ki kheti ek aisa business hai jise apnakar aap lakhon mein kama sakte hain | Ise Holy basil bhi bola jata hai. Aaye jante hai iski jankari detail mein | अन्य देशो के अपेक्षा Tulsi भारत में एक अती महत्वपूर्ण पौधा है। इसलिए तुलसी खेती में किसान को बहुत हीं कम लागत में अच्छा खासा benefit हो सकता है। सामान्य दिनों में tulsi का पत्ता 25 से 30 रूपए किलो बिकता है लेकिन वही तुलसी के पत्ते की कीमत ठंड के समय चार गुना अधिक हो जाता है। तुलसी की खेती करने वाले तुलसी के बीज को बाज़ार में बेच कर अच्छा रकम कमा लेते है । आइये जानते है कैसे तुसली की खेती करने से किसानो को अधिक मुनाफा हो सकता है ।



Tulsi ki Kheti Kaise Karen / How to do Holy Basil Harvesting

Aaj ke daur mein agar aap Tulsi ke kheti karte hain to yah maan kar chaliye ki yah fayde ka hi sauda hai. Pure India aur dusre countries mein Holy Basil ki acchi demand hai. Iski kheti karna aasan hai aur har mausam mein kiya jaa sakta hai. Aur quki tulsi ka use medicine banane mein bhi hota hai isliye is paudhe mein kam bimari lagti hai aur fasal acchti hoti hai. To chaliye jante hai tulsi ke kheti ki jankari.

भूमि का चयन / तैयारी
तुलसी की खेती हर तरह के भूमि पर की जा सकती है। खेती करने से पहले भूमि की अच्छे से जुताई कर के उसमे गोबर के खाद के साथ nitrogen,phosphorus और potash के मात्रा का भी प्रयोग करना चाहिए।

जलवायु
Tulsi की खेती सभी प्रकार की जलवायु में Suitable है लेकिन गर्मी में इसकी खेती को सर्वोत्तम माना जाता है। सर्दी के दिनों में कुहासे(fog) की वजह से तुलसी के पौधों को नुकसान पहुँचता है जिसकी वजह से उपज में कमी आ जाती है ।

पौधे का रोपन
तुलसी के बीजों बोने से पहले उसे एक controlled temperature में उगाया जाता है। पौधे में जैसे ही 3-4 पत्ते आने लगे उसे जड़ से उखाड़ कर खेत में रोप दिया जाता है। तुलसी के पौधे को रोपने के समय line से line की दूरी 1.5 फिट होनी चाहिए और पौधों से पौधों की दूरी भी 1.5 फिट की होनी चाहिए। पौधे के लगने के बाद time time पर उसकी निराई गुड़ाई भी करते रहना चाहिए तथा उसपर मिट्टी भी चढ़ाते रहना चाहिए ।

खाद प्रबंधन
तुलसी के खेती में खाद के लिए बहुत हीं कम खर्च होता है । इसकी खेती में खाद के रूप में गाय का गोबर तथा तुलसी की कटी पत्तियों का भी use किया जाता है। इसी के वजह से tulsi के खेती में लागत कम लगती है और benefit ज्यादा होता है ।

पौधे की कटाई
लगभग एक महीने में तुलसी का पत्ता काटने योग हो जाता है। तुलसी की कटाई 25 से 26 दिनों के अंतराल पर की जाती है जिसमे 5 से 6 inch पेड़ की कटाई की जाती है ।

रोग नियंत्रण

तुलसी में लगने वाले रोगों से नियंत्रण पाने के लिए लगभग 3ml दवा per litre पानी में mix कर 2 से 3 बार पौधों पर छिड़काव करना चाहिए । ठंड के मौसम में कुहासे(Fog) से भी तुलसी के पौधे को काफी हानि पहुंचता है। इसलिए ठंड के मौसम में कुहासे से बचाव के लिए डायथेम एम. 45 का छिड़काव भी खेतो में करना चाहिए जिससे की पौधे रोग मुक्त रहे और तुलसी की उत्पादन प्रभावित न  हो ।




आप इसमें जरूर लिखे की आप  सभी को ये जानकारी कैसे लगी।।

mushroom ki kheti

Mushroom Ki Kheti Kaise Kare Hindi Me

Mushroom woh sabzi hai jo protein se bharpur hoti hai. Iskay andar resha aur folic amla bhi hote hain jo swasthya ke liye bhaut labhdayak hote hain. Isliye sehat ke liye mushroom ko kahna bahut labhprad hota hai. Yahi karan hai ki mushroom aaj kal bahut lokpriya ho rahe hain aur bazar mein inka karobaar badh gaya hai. Isliye hi mushroom ki kheti aaj fayde ka karya hoti jaa rahi hai. Aaiye jaane ki Mushroom Ki Kheti Kaise Kare Hindi Me.

 
Mushroom Ki Kheti Kaise Kare
 Mushroom ugane ke liye mausam ka chayan
Bharat mein mushroom ko ugane ke liye aisa mausam chunyen jismen bahut ahik sardi nahin ho. Yani mushroom thand ke mausam mein nahin ugay jaate hain. Isliye mushroom ki kheti karne ke liye sahi mausam May se september hai. Mushroom ki fasal ko nami yukta vatavaran ki bhi zaroorat hoti hai jo in mahino mein milta hai. Mushroom ke liye vatavran mein 90 partishat tak nami acchi rahti hai. Mushroom ko bahar ya kamre ke andar dono hi jagah lagaya jaa sakta hai.

Mushroom ki kheti ke liye kyarion ki tayyari
Mushroom ki kheti ke liye etoan ya mitti ki kyariyan banai jaati hain. Yeh kyariyan 3 foot lambi, 1 foot chaudi aur 7 inch unchi hoti hain. In par seedhi dhoop ya barsaat nahin aaye iskay liye inke upar shade bana diya jaata hai. In kyariyon mein baans ke sahare dhan ki puaal rakhi jaati hai jis par mushroom ki kheti ki jaati hai. In dhaan ke puaalon ko pani mein dal diya jaata hai aur 12 se 16 ghanton tak bheegne diya jaata hai. Iskay baad unhen farsh par rakhkar unsay atirikt pani nikal diya jata hai. 

 Mushroom ko kaise boyen
Mushroom ke beej ko span kehte hain. Yeh bazaar se prapt kiye jaa sakte hai. Mushroom ke beejon ko bone ke liye pehle se banai gayi mitti ki panktiyon ya kyarion mein baans ke dhaanche rakhkar unke upar dhaan ke puaal ka gattha rakhen. Sabhi gathron ke siron ko baans se ek aur se baandh den. Ab is parat par mushroom ke beej bikher den. Beejon ke upar dhan ya gehun ki bhusi ya chane ka besan thodi si matra mein bikher den. Is pehli parat ke upar hi is tarah hi doosri, teesri aur chauthi parat banayen aur is dher ko kisis pardarshi plastic se dhak den. 

Mushroom  bone ke anya tarike
Yadi apke paas jagah kam hai to aap mushroom ko ek sidhi lambi jagah mein bhi uga sakte hain. Iska liye apko us jagah par rassi tangni padengi aur un rassiyon ke sahare apko thodi thodi jagsh chodkar dhan ki puaal ke gathre raknhe honge aur un par mushroom ke beej dalne honge. Is prakar mushroom ek seedhi lambai rassi ke sahare tange dhan ke puaal par ugenge. Iskay alaawa mushroom ko kamre ke andar bhi ugaya ja sakta hai. Ismay dhan ke puaal ko kamre mein rakhkar farsh aur deewaron par pani chidka jaata hai. Kamre ka taapmaan 34 se 38 degree celcius rakha jaata hai aur kamre ke andar nami ki matra 80 se 85 pratishat rakhi jaati hai. kamre ko 4-5 dinon ke liye band hi rakha jata hai.

 Mushroom ki sinchai
Mushroom bone ke 7-8 din baad is pure puaal ko 35 degree tapmaan ke aas paas rakhen. Jab mushroom ugane lagen to unke upar se plastic ki chadar hata den aur yadi puaal sukha lage to us par halka pani chdak den.  Mushroom ke beej bone ke lagbhag 3 saptah baad acche vikasit mushroom dikhne lagenge. 

Mushroom ki tayyar fasal
Jab muhroom ka upari sira jise jhilli bhi kehte hain fatne lage to smajh lena chahiye ki mushroom ki fasal tyyar ho gai hai aur usay nikala jaa sakta hai. Tab mushroomon ko to lena chahiye. Mushroom ki fasal lagbhag 12 dinon tak tyyar hoti rahti hai. 25 kilogram  geele pual mein lagbhag 4 kilogram mushroom prapt hote hain. Mushroom ke kheti ke liye banayi gayi kyaariyon mein se pratyek kyaari mein se 2 kilogram tak mushroom prapt ho jaate hain. Mushroom ki fasal bahut nazuk hoti hai aur inka bhandarn 2-3 dino ke liye hi kiya jaat hai.

how to farmers success


Kheti Kaise Kare – Kheti Karne Ke Tarike

Kheti me safal ho chuke kisano se agar aap puchhe to ve aapko kahenge ke kisaan se behtar aur koi kaam nahi hai. Kisan ke sharirik parishram use tan se sfurt aur arogyabhara jivan dete hai. Toh jante he ki Kheti Kaise Kare Kheti Ke Tips Jada Paise Kamaye.


Kuch mahatwapurna batein.

Purpose ( kis liye karna hai ).
Plan ( kaise karna hai ).
Product (utpadan kya karoge ).
People ( logo ki upalabdhi hai ya nahin ).

Kheti Kaise Kare
Upar di hui sari baton par ek bar gor farmaye. Agar aap kheti ke kshetra mein naye hain to aapko in sab cheezon ke bare mein sochna hoga.

Agar aapne than hi liya hai kheti karne ka to aap kheti sambhandhit schoolon se jankari prapt kar sakte hai. Kheti ki classes se jud sakte hai, kheti sambandhi bohatsi kitabe hai unhe padh sakte hai. Jab aapko pura gyan prapt ho jaye tab aapko khud karna chahiye.
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Drushtikon
Kheti purnatah kisan ki soch aur durdrushti par nirbhar karti hai. Aur kuch kismet ka hath bhi hota hai. Agar aapne jis utpadan ke bare me socha aur wo us watawaran mein purnataha ji sakta hai to hi aapko outcome milega. Isme agar khet me boring nahi hai to kheto ki sinchai ke liye aapko purnatah barish par nirbhar rehna hoga jiska koi bharosa nahin.

Aisi stithi mein aap kapas jaise utpadan le sakte hai. Jinhe kam pani ke sath bhi utpadan dete dekha gaya hai.


Jagah
Aapki jagah kaha hai, aapke khet mein konsi mitti hai, usme kitna khad lagega wagerah wagerah aapko janchna hoga. Aur uske adhar par aap nirnay le ke konsi fasal leni hai.

Jaise Gramin Kshetra (Rural Area) me bazari sabzeeo ki kheti karna uchit nahi lekin agar pani achha ho to chaval ki kheti karna achcha hoga.


Yojana
Aapka khet kitna bada hai, kis tarah ki zameen hai usme aapne konsi fasal leni chahiye. Paudhe bade hone ke bad unke peeche majdoori kitni lagegi, khad kitna lagega, andaaj me kitna utpanna ho sakta hai. Agar barish na hui to kitna nuksan hoga, aur kya mein is nuksan ko zel paunga? In sab baton ke bare mein pehle hi sochna behtar rehta hai. Yahi to yojna hoti hai, utpadan se leke bechne tak ki sari choti mothi baten agar sahi dhang se aur time par ho to aap kheti mein bohot kamai kar sakte hai. Akhirkar aadmi paisa kamane ke liye hi to sab kam karta hai.



Chote se shurwat
Mein aapko suzav dena chahunga agar aap shurwati kisan hai to shuruwat chote se kare matlab agar aapke pas 1 acre jameen hai to sirf 1/3 ya ¼ acre mein kheti kar ke dekhe. Agar kuch nuksan hua to aapto jyada takleef nahi hogi. Aur agar safal raha to aap ise badi matra mein dohra sakte hai.

Agar aap modern(adhunik) ya maanjhe hue kisan hai to aap poly ouse jaisi takniko ka upypog kar sakte he. Isse vatavaran ka koi bhi asar aapke utpado par nahi padega.

Iske alawa kheti mein suzaw ke liyekrushi Kendra mein ja sakte hai. Ya fir krushi call centre mein call karke apni dikkato ke upay pa sakte hai.

Kisaan toll free call centre no: 1800-180-1551.

Saturday, 16 April 2016

haldi ki kheti, ek bighe me laakho ki kamai

Hamare Kisan bhai Haldi ki Vaigyanik (scientific) Kheti kar ke accha kama sakte hain. Iski sampurna jankari aur kaise kare niche details mein di gayi hai. किसानो को हल्दी की खेती करने से बहुत हीं कम लागत में और कम खेती लायक जमीन में अच्छा मुनाफा हो सकता है । जैसा की हम सभी जानते है की हल्दी का उपयोग उपचार में हजारों सालों से होता आ रहा है और इसके आलावे हर घर में इसका उपयोग होता है, अतः इसकी मांग सालो भर रहती है | वैज्ञानिको द्वारा बताए गए तरीको से अगर हल्दी की खेती की जाये तो किसानो को अच्छे फसल की प्राप्ति हो सकती है । तो आइये जानते है की हल्दी की खेती करने समय किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।



Haldi ki Uchit Kheti Kaise Kare / How to do Turmeric Farming 

Below given turmeric guide info guide and tips will help farmer to do it profitably. Kisan Bhai ke liye Haldi farming ki puri jankari niche se prapt kar ke apna business kar sakte hai.

हल्दी की खेती के लिए सही जलवायु 

वैसे तो हल्दी गर्मतर जलवायु का पौधा है लेकिन समुन्दरतल से लगभग 1500m के ऊंचाई तक के स्थानो में भी हल्दी की खेती की जा सकती है । जब वायुमंडल का तापमान 20 से. ग्रे. से कम हो जाता है तो हल्दी के पौधे के विकास पर काफी प्रभाव पड़ता है । हल्दी को ज्यादातर छाया देने वाले पौधों के साथ बोया जाता है ।

हल्दी को बोने और उसके उगने समय कम वर्षा और पौधों के विकास के समय अधिक वर्षा की जरूरत होती है । फसल पकने के एक महीने पहले सुखा वातावर्ण हो तो अच्छा होता है ।

भूमि का चयन व तैयारी 

हल्दी के खेती के लिए मटियार दोमट भूमि जिसमे की जल निकास का प्रबंध अच्छा हो सबसे अच्छा माना जाता है । खेती शुरु करने से पहले खेत की अच्छे से जुताई कर लेनी चाहिए और हो सके तो मांदा का निर्माण भी कर लेना चाहिए ।

हल्दी के किस्मे / Types of Turmeric

हल्दी के तीन किस्मे है :-

अल्प कालीन किस्मे – इस किस्म के फसलें 7 महीने में पक कर तैयार हो जाते है ।
मध्य कालीन किस्मे – इस किस्म के फसलें 8 महीने में पक कर तैयार हो जाते है ।
दीर्घ कालीन किस्मे – इस किस्म के फसलें को पकने में लगभग 9 महिना लग जाता है ।
सिंचाई / जल प्रबंधन / Water Management

अप्रैल के महीने में बोई गई फसल को गर्मियों में 10 से 12 दिन के अंतर पर सिंचाई करना चाहिए। प्रकन्न निर्माण के समय भूमि में नमी बनी रहनी चाहिए नहीं तो उपज में कमी आ जाती है । सिंचाई के लिए deep arigation या टपक पतिथि का इस्तेमाल करना चाहिए इससे जल का बचत होता है साथ ही मेहनत भी कम लगती है । खेत में ज्यादा देर पानी जमा रहने से फसल को नुकसान पहुँच सकता है इसलिए खेत के चारो ओर जल निकासी के लिए 50cm चौड़ी और 60cm गहरी नाली बना देनी चाहिए ।

खाद प्रबंधन 

300 क्विंटल गोबर की खाद या composed को खेत में समान्य रूप से डाल कर मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की जुताई कर देनी चाहिए। इसके अलावा 200kg amunium sulphate और 200kg muriat of potash बुआई के पहले खेत में डाल देना चाहिए । फिर लगभग 40 दिनों बाद 150kg amunium sulphate, और 60 से 80 दिनों के बाद 65kg यूरिया फसल में डाल देना चाहिए ।

रोग व किट नियंत्रण / Diseases Control

हल्दी के तने में छेद करने वाले किट जो की पौधों को ज्यादा प्रभावित करते है उसे डाईकोक्रोसिस पेक्टी फेरालियस कहा जाता है । इस किट से बचने के लिए किट ग्रसित तनो को काट कर फेंक देना चाहिए ।

कुछ छोटे छोटे किट ऐसे भी होते है जो की पत्तियों और पौधे के अन्य भागो का रस चूसते है । इससे बचने के लिए वैज्ञानिको की सलाह द्वारा बताए गए फफूंदी नाशक दवाइयों का इस्तेमाल करना चाहिए ।

How we start poultry farm in field

 राम-राम सभी किसान भाइयों को जैसा कि आप जानते हैं आज के टाइम में भारतीय किसान पोल्ट्री फार्म डेरी फार्म मछली फार्म बटेर पालन बतख पालन आदि यह...